संयुक्त प्रयास से दूर होगा जल संकट

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने बढ़ते जल संकट की चुनौती से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त प्रयास करने का आह्वान किया। ग्रेटर नोएडा के इंडिया एक्सपो मार्ट एंड सेंटर में इंडिया वाटर वीक के सातवें संस्करण का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा कि जल आज बहुआयामी और जटिल मुद्दा है। बढ़ती जनसंख्या व शहरीकरण के कारण जल प्रबंधन, संचयन व वाटर गवर्नेस समय की जरूरत है। जल के सतत व समान वितरण, रिसाइकिल करने के कार्य प्रभावी ढंग से करने होंगे। इसमें तकनीक की अहम भूमिका होगी। उन्होंने वैज्ञानिकों, टाउन प्लानर व नवोन्मेषकों से अपील की कि वह आधुनिक तकनीक विकसित करें। उन्होंने आगाह किया कि जल संसाधन राष्ट्रीय सुरक्षा का भी गंभीर मुद्दा है। जल संसाधनों को साझा करने वाले दो या दो से अधिक देश इसे हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। यह संघर्ष का कारण बन सकता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि विचार मंथन से जो अमृत निकलेगा,वह पृथ्वी पर मानव जीवन कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेगा। राष्ट्रपति ने कहा- अधिकतर धार्मिक स्थल नदियों के तटों पर हैं। ऋग्वेद के श्लोक का जिक्र करते हुए कहा कि पानी के सभी स्रोत को पवित्र माना गया हैं। इसके बावजूद जल संसाधनों का अस्तित्व तेजी से मिट रहा हैं। उन्होंने कहा कि गंगा के बेसिन सिकुड़ रहे हैं। 

भारतीय सभ्यता में जल को दैवीय रूप में महत्व 

राष्ट्रपति ने कहा कि जल सीमित है। सही उपयोग से ही इसे दीर्घकाल तक बनाए रखा जा सकता है। इसलिए मितव्ययिता से उपयोग करें और लोगों को भी जागरूक करें। जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। भारतीय सभ्यता में जल को दैवीय रूप में महत्व दिया गया है। ऋषि भागीरथ अपने पुरखों की मुक्ति के लिए कठिन तपस्या कर गंगा को पृथ्वी पर लाए थे। आज के दौर में यह कहानी मिथ हो सकती है, लेकिन इसका सार जीवन में पानी के महत्व को बताता है।



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